हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, सदरुल औलमा अल्लामा सय्यद गुलाम हुसैन सन 1276 हिजरी बामुताबिक़ सन 1860 ई॰ में सरज़मीने हैदराबाद पर पैदा हुए, मौसूफ़ के वालिद “मीर अशरफ़ हुसैन” ख़ानदान के मोअज़्ज़ज़ और बावक़ार अफ़राद में शुमार होते थे।
अल्लामा ने इब्तेदाई तालीम अपने घर पर हासिल की फ़िर हैदराबाद में मुक़ीम औलमा ए किराम से कस्बे फ़ैज़ किया, आपने मौलाना मोहम्मद अली खुरासानी, मौलाना सय्यद अली शूश्तरी, मौलाना सादिक़ अली, मौलाना मीर काज़िम अली और मौलाना ग़ुलाम नबी जैसे जय्यद असातेज़ा की ख़िदमत में रहकर मनतिक़,फलसफ़ा, फ़िक़ह, उसूल और अदब की तालीम हासिल की।
हैदराबाद से फ़रागत के बाद नजफ़े अशराफ़ का रुख़ किया और अपनी सलाहियतों का लोहा मनवाकर आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद हुसैन माज़नदरानी, आयतुल्लाह सय्यद अबुल क़ासिम तबातबाई और आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद हुसैन काज़मेनी से इजाज़े हासिल करके हिंदुस्तान की सरज़मीन पर नुज़ूले इजलाल फ़रमाया।
नजफ़ से हिंदुस्तान आने के बाद मोसूफ़ ने अपने इजतेहाद का ऐलान किया जिसके नतीजे में बाज़ ओमरा व रोअसा ने रुजू किया और आपकी तक़दीर का सितारा जगमगा उठा।
अल्लामा माक़ूलात व मंक़ूलात में अपनी मिसाल आप थे, मोसूफ़ के शागिर्दों में मौलाना ग़ुलाम अली हाजी नाजी गुजराती का नामे नामी इसमे गिरामी सितारों के दरमियान चाँद की मानिंद चमकता है।
मौसूफ़ ने कुछ अरसे हैदराबाद में सरकारी मुलाज़ेमत की उस वक़्त आपकी तनख़ाह सौ रूपये थी, सरकारी मुलाज़ेमत के अलावा मोसूफ़ ने महुव्वा “काठयावार गुजरात” में ख़ोजा जमाअत से मुंसलिक होकर ख़िदमात भी अंजाम दीं।
सदरुल औलमा अपने ज़माने के माये नाज़ ख़तीब थे,अरबी और फ़ारसी में उस दर्जा माहिर थे कि दोनों ज़बानों में बिला तकल्लुफ़ गुफ़्तगू कर लिया करते थे, मोसूफ़ जूनागढ़ में भी उस्ताद की हैसियत से पहचाने गये।
अपने ज़माने के औलमा में बासलाहियत शख़्स के उनवान से पहचाने जाते थे, अक्सर दक़ीक़ मसाइल पर बहस व गुफ़्तगू का सिलसिला जारी रहता था, फ़लसफ़े में इतने ज़्यादा माहिर थे कि अक़ाइद में नुक्ता आफ़रीनयां करते थे, औलामाए लखनऊ से बहुत अमीक़ रवाबित थे, यही सबब है कि मौसूफ़ की किताब “शमसुल हिदाया” पर ताजुल औलमा आयतुल्लाह अली मोहम्मद, मौलाना अब्दुल्लाह और मौलाना मोहम्मद हुसैन वगैरा जैसे जय्यद औलामाए की तक़रीज़ात मोजूद हैं।
सदरुल औलमा ग़ुलाम हुसैन इलमो अमल में वहीद, मनाज़ेरे में फ़रदे फ़रीद और अक़ाइद में निहायत शदीद थे यही सबब है कि आपने मैदाने मनाज़ेरा में भी शिकस्त का मुँह नहीं देखा, अपने हों या बेगाने जिसके सामने बैठ गये उसको क़ायल करने के बाद ही अपनी जगह से हरकत की।
अल्लामा ने अफ्रीक़ा के शहर “ज़ंजबार” में ख़ोजा जमाअत के हमराह दीनी खिदमात अंजाम दीं, ज़ंजबार में क़याम के दौरान ही किताब शमसुल हिदाया तहरीर फ़रमाई।
मज़कूरा किताब के अलावा भी मौसूफ़ की काफ़ी तालीफ़ात हैं जिनमें से: इस्बातुन नुबुव्वा, तफ़सीरे आयते क़ुरबा, तफ़सीरे आयते मुबाहेला, तफ़सीरे आयते ततहीर, किताबुत तौहीद, अल इमामत वल विलायत, शरहे उसूले फ़िक़ह और शरहे क़सीदे खलीलया वगैरा जैसी अज़ीम किताबें आपकी अरबी व फ़ारसी सलाहियतों का मुँह बोलता शहकार हैं।
आख़िरकार ये इल्म व अमल का दरख्शान आफ़ताब बतारीख़ 8 रबीउलअव्वल सन 1352 हिजरी बामुताबिक़ 2 जुलाई सन 1923 ई॰ में सरज़मीने हैदराबाद पर गुरूब हो गया, आसमाने इलमो फ़क़ाहत पर तारीकयां हाकिम होने लगीं, बुलबुले हज़ार दास्तान चहचहाते हुए यक बा यक ऐसा खामोश हुआ कि अज़ीज़ों की नाला व फ़रयाद पर भी ज़बान नहीं खोलता,
रिज़ा ए इलाही के सामने सर झुकाए हुए चाहने वालों की आहो फ़ुगाँ के हमराह जनाज़ा उठाया गया,औलमा, अफ़ाज़िल, तुल्लाब व मोमेनीन की मौजूदगी में नमाज़े जनाज़ा अदा की गयी और दायरा ए मीर मोमिन में सुपुर्दे लहद कर दिया गया।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-4 पेज-129 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2019ईस्वी।